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मेरे महबूब खूब प्यार आप निभा गये,
प्यार को ही मेरा गुनाह बता गये,
बस एक ही कसक है, जो बेचैन किये है,
करके गुनाह खुद, हमे गुनेहगार बना गये|
मजबूर बहूत थे, दिल-ए-नादान के हॉथों
आप खूब उसका ही फायदा उठा गये,
जिनकी नज़रों उठाते रहे ता-उमर् हम उन्हे,
उनकी ही नज़रों मे वो हमें गिरा गये|
रिस्ता हमारा आपका ,माना कमजोर बहुत था,
पर फिर हम उसे, अब तक निभा गये,
आप जी क्या खूब निकले खुद गर्ज
सारे पुराने रिस्ते ही दांव पर लगा गये|
बापस वो बफाये आपकी हम क्या लायेगे,
मेरी बफाओ को भी, जफा आप बना गये,
क्या मुहब्बत हमने भी की मुसाफिर से,
वो हमको हमरा भी रस्ता भुला गये|
इस तरह से जिंदगी में तूफान लाये आप,
कि मेरा होने का बजूद तक हिला गये,
कल तक हुआ करती थी जो मन की बात,
उसको तनहाई की आवाज़ बना गये|
कल तक जो खुदा थे, वो यूं खुदाई दिखा गये,
हमको खुदा के दर का पता बता गये,
उस दिन का इंतजार जब गुनाहों का फैसला होगा,
जाते जाते वो इंतजार करना सिखा गये||
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